Wednesday, November 24, 2010

पीएम साहब क्या अब आप कुर्सी छोड़ेंगे?

अगर अब भी प्रधानमंत्री कार्यालय या केंद्र सरकार हटाए गए संचार मंत्री ए. राजा का बचाव करता है तब, क्षमा करेंगे, उन्हें सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कह दिया कि तथ्यों की मौजूदगी के बावजूद आरोपी मंत्री राजा के खिलाफ जानबूझकर कार्रवाई नहीं की गई। सुब्रमण्यम स्वामी ने राजा के खिलाफ मामला दर्ज किए जाने की अनुमति मांगी थी, जिस पर प्रधानमंत्री कार्यालय 2 साल निष्क्रिय बैठा रहा। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश ने अत्यंत ही तल्खशब्दों में टिप्पणी की है कि स्वामी की शिकायत हवाई नहीं है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि स्वयं प्रधानमंत्री ने ए. राजा को बचाने की कोशिश की? लगभग 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपयों के राजस्व घोटाले के मामले में 2 वर्षों तक चुप्पी स्वयं प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा कर रही है। मीडिया द्वारा परत-दर-परत मामले को उभारने और संसद में विपक्ष के कड़े आक्रामक रवैये के बाद राजा से इस्तीफा तो ले लिया गया, किंतु इससे न तो राजा का अपराध खत्म हो जाता है और न ही मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी की अवधारणा के आधार पर प्रधानमंत्री सहित पूरा मंत्रिमंडल जिम्मेदारी से हाथ झटक सकता है। दोषी सभी हैं। प्रधानमंत्री अधिक! चूंकि 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला सन् 2009 में नए मंत्रिमंडल के गठन के पूर्व ही सार्वजनिक हो चुका था, मनमोहन सिंह ने अपने दूसरे मंत्रिमंडल में पुन: न केवल राजा को शामिल किया बल्कि वही दूरसंचार विभाग भी दे दिया, घोटाले में प्रधानमंत्री बराबर के भागीदार माने जाएंगे। सीबीआई और आयकर विभाग के दस्तावेज इस सवाल का जवाब देंगे। राजा ने कुख्यात फिक्सर नीरा राडिया की सहायता ली थी। सीबीआई दस्तावेजों के अनुसार राडिया ने राजा को मंत्री बनवाने और दूरसंचार विभाग ही दिलवाने में दो प्रख्यात पत्रकार बरखा दत्त और वीर सांगवी की मदद ली थी। इनकी कोशिशों के बाद ही राजा दूरसंचार विभाग के मंत्री बने। जाहिर है, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऐसे प्रभाव या दबाव में ही राजा को पुन: मंत्री बनाया था। स्वच्छ छवि और किसी भी प्रभाव से इतर काम करने का दावा करनेवाले मनमोहन सिंह अगर सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर 2 साल चुप बैठे रहे तो क्या अचरज? 2-जी स्पेक्ट्रम जैसा महाघोटाला अगर फलता-पनपता रहा तो निश्चय ही प्रधानमंत्री की जानकारी में ही! प्रधानमंत्री इससे इन्कार नहीं कर सकते। कांग्रेस महासचिव राहुल गंाधी दावा करते रहे हैं कि सरकार में भ्रष्टाचारियों के लिए कोई स्थान नहीं है। भ्रष्टाचार को स्वयं अंजाम देना ही किसी को भ्रष्टाचारी नहीं बनाता, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष इसके मददगार भी भ्रष्टाचारी माने जाएंगे। क्या राहुल गांधी उपलब्ध तथ्यों के आधार पर प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांगेगे? ऐसी नैतिकता दिखाने का साहस राहुल में नहीं है। चूंकि मनमोहन सिंह ने केंद्र सरकार को बचाए रखने के लिए पहले मजबूरी में डीएमके के राजा को मंत्री बनाया और बाद में मजबूरी में उन्हें कायम रखा! कांग्रेस के अंदरूनी सूत्र जब यह तर्क देते हैं तो बड़ा दु:ख होता है। सत्ता में बने रहने के लिए भ्र्रष्टाचार के पक्ष में देशहित के साथ समझौता एक राष्ट्रीय अपराध है। डीएमके के सामने कांग्रेस का नतमस्तक होना एक त्रासदी से कम नहीं है। बता दूं कि यह वही कांग्रेस है जिसने 1997 में प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल की सरकार से सिर्फ इसलिए समर्थन वापस ले लिया था, क्योंकि उसमें डीएमके भी शामिल कर ली गई थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तब कहा था कि जो डीएमके पार्टी उनके पति राजीव गांधी की हत्या की जिम्मेदार रही है, उससे युक्त सरकार को समर्थन कैसे दिया जा सकता है? तब सोनिया की बात ठीक लगी थी, लेकिन सत्ता पर कब्जा करने के लिए उसी सोनिया गांधी ने सन् 2004 में अपने पति की कथित हत्यारी डीएमके को सरकार में शामिल कर लिया! सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक समझौते का यह एक अत्यंत ही घृणित उदाहरण है। ऐसे में डीएमके के घोटालेबाज भ्रष्ट मंत्री के पापों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह परदा डालते रहे तो सत्ता में बने रहने के मजबूरी के कारण ही!
और अंत में,आपसे निवेदन= ब्लॉग के विचारों को आपकी मदद की जरुरत है. अपनी राय दो टूक दें...मुझे आपसे इसी की उम्मीद है.

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