यह रात और दिन
यह रात और दिन
भरी दोपहर
यह शामो-सहर
इन्हें देखकर
मुझे ऐसा लगता है
मैं जी रहा हूँ
मगर कोई है जो
कभी रात को
कभी दोपहर में
कभी शाम को
कभी मुह-अँधेरे
मेरे कान में
हिकारत* से कहता है (* तुच्छ्भाव)
तू मर रहा है
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और ये भी- मशवरा
मेरी जां इस कदर अंधे कुएं में
भला यूँ झाकने से क्या होगा.
कोई पत्थर उठाओ और फेंको
अगर पानी हुआ तो चीख उठेगा.
2 comments:
very nice....
mere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
Lyrics Mantra
very good like it
agar aapke paas alvi saab ka aur likhaa ho to jarur post karen
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